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काव्य संग्रह - भाग 7

लेल्योजी लेल्योजी थे

लेल्योजी लेल्योजी थे, लेल्यो हरि को नाम॥
मैं व्योपारी राम-नाम का, प्रेमनगर है गाम॥टेर॥
मैं प्रेमनगर से आया, हरि नाम का सौदा ल्याया॥
च्यार खूँट में चली दलाली, आढ़त चारुँ धाम॥१॥
सोना-चाँदी कछु नहीं लेता, माल मोफत में ऐसे ही देता।
नाम हरि अनमोल रतन है, कौड़ी लगे न दाम॥२॥
बाट तराजू कछु नहीं भाई, मोलतोल उसका कछु नाहीं।
करल्यो सौदा सत-संगत का, टोटे का नहीं काम॥३॥
राम-नामका खुल्या खजान, कूद पड्या नर चतुर सुजान।
सुगरा-सेन तुरत पहिचाने, नुगरे का नहीं काम॥४॥
पाँचु की परतीत न कीजे, नाम हरि का निर्भय लीजे।
मगन होय हरिके गुन गावो, भजल्यो सीताराम॥५॥
सस्ता माल नफा है भारी, सहस्त्रगुनी देव साहूकारी।
करल्यो सुरता राम भजन में, मिल जाय राधेश्याम॥६॥
नाम हरि अनमोल रतन है, सब धन से यह ऊँचा धन है।
कह गिरधारीलाल और धन, मिथ्या जान तमाम॥७॥

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